भारत सरकार नें 01 जनवरी, 2013 से देश के चुनिंदा
51 ज़िलों में कैश-सब्सिडी
योजना लागू करी है, जिसे उसने, “आपका पैसा, आपके हाथ में ” योजना कह कर पुकारा है । मध्य प्रदेश के होशंगाबाद
एवं हरदा ज़िलों को भी इसमें शामिल किया गया है। यह योजना उन ज़िलों में प्रारंभ
होना बताया गया है जहां पर आधार कार्ड का काम 80% या उस से अधिक हो चुका है।
सरकार ने दावा किया
है कि यह योजना एक “गेम चेंजर” का रूप ले लेगी जिस
से यू पी ए की सरकार को 2014 के लोकसभा के चुनावों मे भारी सफ़लता मिलेगी। यू पी ए
की सरकार में शामिल कांग्रेस पार्टी को यही उम्मीद है कि वोटर उसे 2014 में वोट दे
कर केन्द्र में फ़िर से सरकार बनानें का मौका देगा ।
यह तो हुआ एक सरकारी
ख्याली-पुलाव, चुनावी-खिचड़ी की देग़ तो पकने के लिये आग पर चढा दी गयी है ,
और वह जब तक
पके आईए हम कुछ बातों की पड़ताल कर लें ।
इसमें कुछ भी तो नया नहीं है ?
जब सरकार ने यह
कहा की वह इस में 29 योजनाओं को शामिल करेगी तो यह ठीक ही था कि ग़रीब को ज़्यादा
भटकना नहीं पड़ता और उसे सरकारी मदद घर पर ही मिल जाती। वर्तमान में ग़रीबों को उनकी
पत्रता के अनुसार बच्चों को वज़ीफ़ा,इन्द्रा
आवास,जननी सुरक्षा , व्रिद्धाव्स्था- पेंशन , मनरेगा जैसे
अहम योजनाओं का भुगतान बैंक, सह्कारी समितियों की बैंकें अथवा पोस्ट आफ़िसों के
माध्यम से नगद भुगतान हो रहा है। इसका मतलब यह है कि इन योजनाओं का लाभ लेना है तो
लाभार्थी को इन बैंकों या पोस्ट आफ़िसों में अपने खाता खोलना ही पड़ता है । सरकारी योजनाओं
का लाभ लेने के लिये आप को पता ही है कि किस प्रकार से , अर्थात , हर प्रकार से , परेशान
किया जाता है। कई बार बैंकें किसी ग़रीब का खाता खोलने से भी मना कर देती हैं और उन
पर नई-नई शर्तें लगा देतीं हैं।
होशंगाबाद ज़िले
में आदिम जाति विभाग ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि कैश सब्सिडी
योजना का लाभ वर्तमान में केवल आदिम जाति विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग तथा पिछ्ड़ा
वर्ग एव अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा दी जा रही पोस्ट मैट्रिक , प्री मैट्रिक
एव प्रवीणिय छात्रव्रित्त्ति तथा स्वास्थ्य एव परिवार कल्याण विभाग द्वारा संचालित
जननी सुरक्षा के हित्ग्राहियों के लिये ही लागू करी गयी है। इन योजनाओं के अलावा
कोई दूसरी कैश सब्सिडी का लाभ जैसे केरोसिन, एल पी जी गैस, उर्वरक की सब्सिडी ,
पेंशन की राशि का नगद ह्स्तांतरण जनवरी माह 2013 से नहीं किया जाएगा। तो इस योजना में नया कुछ भी नहीं।
वास्तव में इस
की असली परीक्षा तो तब होगी जब इस को पी डी एस के राशन , एल पी जी के सिलेंडर और
केरोसिन के तेल को उप्लब्ध करवाने से जोड़ा जायेगा । देखना होगा कि उस स्तर पर जाने
से पूर्व इस को किस तरह से सरकार गावों तक ले जाती है।
बैंकों को ही , फ़िर से ,“ साहूकार
” बनाया !
तो इस योजना
में हरेक लाभार्थी को अपने निवास के निकट के किसी बैंक में एक खाता खुलवाना होगा ।
खाता खोल कर उस में रुपये जमा कर देना एक पहलू है परंतु इसी खातें में कैश का
हस्तांतरण हो जायेगा इस के लिये उस लाभार्थी
को बाज़ार-भाव से इन सामग्रियों को क्रय करना होगा। सारा पेंच इस “क्रय” करनें में ही है।
पहली बात यह कि
उसके पास इतना नगद हो कि वह राशन की दुकान से सामान को नगद में खरीद सके, यदि उसके
पास नगद नहीं है तो वह बैंक से उधार लेगा या साहूकार के पास जायेगा , यानी
वह रुपये को नगद करने के लिये पहले कहीं से नगद ( और
वो भी ब्याज पर ) कर्ज़ा ले, फ़िर बाज़ार जा कर राशन की दुकान से खाद्य
सामग्री की खरीदी करे । ऐसे में बैंक तो खुद ही कर्ज़ा
बांटेगा और खुद ही साहूकार बन जायेगा ।
दूसरा पहलू यह
है कि बैंकों द्वारा लोगों के खातें में रुपया जमा तो कर दिया जायेगा परंतु रुपये निकालना
कितना सुलभ, सुगम और आसान होगा यह आपको पता ही है। शहरों, कस्बों या बड़े गावों को
यदि छोड़ दें तो छोटे गावों के खाताधारी के हाथ में रुपये समय पर पहुंचाना काफ़ी
कठिन साबित होगा। बैंकें इस समस्या के समाधान के रूप में बैंक-प्रतिनिधि, बैंक-दूत
या मिनी ए-टी-एम जैसे साधन पेश कर रही हैं किंतु इनकी पहुंच आज भी काफ़ी कम ही है।
सच तो यह भी है कि गांव के ही किसी धनी व्यक्ति जैसे मास्टर, सरपच, सचिव, रिटायर्ड
कर्मचारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता , आदि को बैंकें अपना यह काम सोंप रही हैं जिस से
यह कहा जा सकता है कि
बैंकें स्वय
ही “ साहूकार” बन
रही हैं ।
“आधार कार्ड” खुद ही अधर में ?
हमने अक्सर
देखा है कि सरकारी योजनाओं की घोषनाएं करने में हमारी ब्यूरोक्रेसी अधिक तीव्रता
दिखाती है परन्तु उनको अमली जामा पहनानें के काम में फ़िस्सडी ही साबित होती है। आधार
कार्ड बनानें के लिये जिस यूनीक़ इडेंटिफ़िकेशन
अथोरिटी आफ़ इंडिया का गठन वर्ष 2008 में किया गया था उसने पिछ्ले तीन
वर्षों में देश की पूरी आबादी का लग्भाग 19% या कहें कोई 22 करोड़ देश वासियों का
आधार कार्ड ही बना पायी है। जनवरी 2013 को लक्ष्य मान कर केवल 51 ज़िलों के भी 80%
कार्ड नहीं बन पाये थे, तो कल्पना करें कि बाक़ी का कार्य कब होगा ?
आधार कार्ड बन वाने के लिये आज भी इन ज़िलों में लोगों की लम्बी-लम्बी
कतारें देखी जा रही हैं और यह काम भी प्राईवेट कमपनियों को सौप दिया गया है जो यह
काम अपनी एक तय-रफ़्तार से कर रही हैं। आधार कार्ड का विरोध कुछ संस्थाओं द्वारा इस
लिये भी किया जा रहा है क्योंकि इस में कार्डधारी की निजि जानकारियों के सार्वजनिक होने का ख़तरा है। तो यह मानना
उचित ही होगा कि कार्यो मे देरी, सरकारी उपेक्षा , ठेकेदारों की मनमर्ज़ी और सरकार
की लापरवाही के कारण आधार कार्ड का काम आज खुद अधर में
है !
अंतत: लाभ किसको ?
इस योजना को
यदि एक आम आदमी की नज़र से देखें तो पायेंगे की सारे कार्य तो बैंक और आधार कार्ड
के साथ जुड़ गये हैं। चाहे वह कोई अनुदान पाना हो, बच्चों के लिये वज़ीफ़ा लेना हो या
राशन की दुकान से सामान, आप को किसी न किसी बिचोलिये की
मदद लेनी पड़ेगी। जब किसी ग़रीब के पास राशन की दुकान से सामान खरीदने के लिये नगद
होगा ही नहीं तो वह सामान कैसे लेगा (ख़रीदेगा) ? और जब वह सामान लेगा ही नहीं तो
सरकार उसे कैश सब्सिडी देगी कैसे ? यानी जब अधिक लोग बाज़ार से सामान खरीदने के लायक
बचेंगे ही नहीं तो लाभ तो सरकार को होना है ! गरीबी उन्मूलन, ग्राम विकास या
मूल्भूत सेवाओं जैसे आम आदमी से जुड़ी योजनाओं का बजट में जब तय राशि खर्च ही नहीं
होगी तो उसे गैर-बजट के मद में खर्च करने में हमारी सरकार क्यों हिच- किचायेगी ?
आम आदमी को किस
तरह से सबसिडी से दूर किया जा रहा है उस को
समझने के लिये उदाहरण के तौर पर एक गैस सिलेंडर को 468 रु के बजाये 1006 रु ( बैतूल
में ) में खरीदना होगा और इस खरीदी का अन्तर ,यानी 538 रु , को ग्राहक के बैंक
खातें मे जमा करवाया जायेगा। ध्यान रहे कि ऐसी कोई योजना फ़िलहाल सरकार के पास नहीं
है जिस से आम आदमी को राशन का गेंहू- चावल , खाद ( उर्रवरक ), एल पी जी गैस, आदि
की कैश सब्सिडी उस को जल्द मिल सके ।
इस योजना में
वायदे कई गये है जैसे इंटरनेट से काम होने से समय कम लगेगा, पारदर्शी कार्य
प्रणाली होगी, घर के दरवाज़े पर बैंक पहुंचेगी , बिचौलिये ख़त्म किये जाएंगे, आदि,
आदि, लेकिन आपने पढ़ा कि किस प्रकार से सरकार ग़रीबों को लोक लुभावने सपने दिखा कर
उनके मुंह से निवाला भी छीनने जा रही है ।
लाभ का सौदा तो
बैंकों, उनके एजेंटों, गांव के सेठ साहूकारों और सब्सिडी के गेंहू-चावल- खाद- शक्कर-
गुड़ पर चलने वाले उद्योग धंधों का ही होनेवाला है । इस योजना में अभी कैई सुधारों
के आवश्यकता है।
हमें अब तक के
अनुभवों से सीख कर आगे बढ
ना होगा।
This article was written on
15 May 2013.
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